BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 19 
मलिक मोहम्मद जायसी

(व्याख्या भाग)

पद्मावत का मानसरोदक- खण्ड

(1)
एक दिवस पून्यो तिथि आई। मानसरोदक चली नहाई ॥
पदमावति सब सखी बुलाई। जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥
कोइ चंपा कोई कुंद सहेली। कोई सुकेत, करना, रस बेली ॥
कोई सु गुलाल सुदरसन राती। कोई सो बकावरि- बकुचन भाँति ॥
कोई सु मालसिरि, पुहपावती। कोई सो जाही जूही सेवती।।
कोइ सोनजरद, कोइ केसर। कोई सिंगारहार नागेसर ॥
कोई कूजा सदवर्ग चमेली। कोई कदम सुरस रस बेली ॥
दोहा -चली सबै मालति सँग, फूलीं कवल कुमोद।
बेधि रहे गन गँधरब, बासपरमदामोद ॥ 1 ॥

शब्दार्थ - कुन्द = हल्के रंग का श्वेत पुष्प। कत = केतकी। करना = कर्णिकार। राती = लाल। बकावरि = गुलाब। बकुचन = गुच्छा। मौलसिरि= मौलश्री। जाही = चमेली की जाति का एक फूल। सेवती = श्वेत गुलाब। कूजा = गुलाब की जाति का एक पुष्प। मालति = पुष्प विशेष। वास = सुगन्ध।

सन्दर्भ - उपरोक्त पंक्तियाँ मलिक मोहम्मद जायसी विरचित महाकाव्य 'पदमावत' के मानसरोवर खण्ड से अवतरित है।

प्रसंग - उपरोक्त पद में कवि ने पद्मावती की सखियों को पुष्प वाटिका के रूप में चित्रित किया है।

व्याख्या - पूर्णिमा के पर्व में पद्मावती मान सरोवर में स्नान करने के लिए गयी। उसने अपनी सभी सखियों को बुलाया। वे सब आयीं तो रंग-विरंगे वस्त्रों में सजी होने से ऐसी लगती थीं, मानों उनके रूप में पुष्पवाटिका ही विकसित हो गयी हो। उनमें कोई चम्पा कोई कुन्द, कोई सुन्दर केतकी, कोई गुलाब कोई सुदर्शन के समान मनोरम कोई गुलाब बकवाली गुच्छे के समान विहँसती हुई थी। अन्य सखियों में मौल, श्री कोई पुष्पावती, कोई जाही कोई जूही, कोई नागकेसर, कोई कूजा, कोई हजारा, कोई चमेली, कोई कदम्ब के पुष्पों की भाँति रस सिक्त थीं।

कमल और कुमुदिनी के समान विकसित समस्त सखियाँ मालती के साथ-साथ चलीं। उनकी आनन्ददायक सुगन्ध से गन्धर्व गण भी मुग्ध होकर रह गये।

विशेष- (1) नारियों के शरीर से पुष्पों की सुगन्ध निकल रही है।
(2) सखियों के सन्दर्भ में सुगन्ध का प्रयोग बड़ा ही सार्थक हुआ है।
(3) उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(2)

मिलहिं रहसि सब चढ़हिं हिंडोरी। झूलि लेहिं सुख बारी भोरी ॥
झूलि लेहु नैहर जब ताई। फिर नहिं झूलन देइहि साई ॥
पुनि सासुर लेइ राखिहि तहाँ। नैहर चाह न पाउब जहाँ ॥
कित यह धूप, कहाँ यह छाहाँ रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ।।
गुन पूछिहि और लाइहि दोखू। कौन उतर पाउब तहँ मोखू ॥
सासु ननद के भौंह सिकोरे रहब सँकोचि दुबौ कर जोरे ॥
कित यह रहनि जो आउब करना। ससुरेइ अंत जनम दुख भरना ॥
कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल ॥
आपु आपु कहँ होइहि, परब पंखि जस डेल ॥ 3 ॥

शब्दार्थ - हिंडोरी = झूलों पर, ताई = तक, साईं = मालिक (पति), मोखूँ = मोक्ष, रहसि = रहस (क्रीडा), डेला = डला, डेला।

सन्दर्भ- पूर्ववत्।

प्रसंङ्ग - जायसी ने लौकिक जगत् में ही जीवन की सम्पूर्ण कर्म साधना और ईश्वर साधना करने की सलाह इन पंक्तियों के माध्यम से देते हैं।

व्याख्या - जायसी कहते हैं कि पद्मावती के साथ सभी सखियाँ हिंडोले पर चढ़ गईं और सभी भोली-भाली बालाएँ झूलने का सुख लेने लगीं अर्थात् जीवन का आनन्द लेने लगीं। सखियाँ आपस में कहती हैं कि जब तक यह नैहर है तब तक आनन्द से झूल लो आनन्द मना लो अर्थात् इस लौकिक जगत् में भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त कर लो फिर तो वह परमात्मा रूपी पति ऐसा आनन्द नहीं लेने देगा अर्थात् नहीं झूलने देगा। ससुराल में तो फिर ऐसे रखा जाएगा जहाँ मातृ-पितृ गृह की खबर भी नहीं मिलेगी अर्थात् जीवन के समाप्ति के बाद इस लोक का कोई हाल नहीं मिलेगा, कहाँ इस लोक की धूप-छाँव का आनन्द मिलेगा वहाँ तो हम अकेली होंगी उस परमात्मा के घर में हमारी कोई सखी-सहेली' भी नहीं होगी। वहाँ सर्वदा गुण पूछने अर्थात् अच्छी बात कहने पर भी दोष लगाया जाएगा तब हम कौन- सा उत्तर देकर आरोप मुक्त हो पावेंगी। वहाँ सासु और ननदें बात-बात में अपनी भौंहें सिकोड़ेंगी अर्थात् नाराज होंगी और हमें संकुचित होकर दोनों हाथ जोड़े खड़ी रहना पड़ेगा। कहाँ ऐसा रहस या क्रीड़ा होगी जो पुनः आकर करेंगी? अर्थात् फिर पुनर्जन्म सम्भव नहीं फिर तो उसी प्रभु की शरण रूपी ससुराल में अन्त होगा और सम्पूर्ण जीवन वहीं व्यतीत होगा।

इस मायके में फिर कहाँ आ पावेंगी तथा ससुराल में ऐसा खेल कहाँ सम्भव होगा, हममें से प्रत्येक को विवाह ऐसा होगा कि हम प्रत्येक अलग-अलग हो जाएँगी तथा वहाँ उसी प्रकार बन्धनयुक्त हो जाएँगी जैसे पक्षी के समूह में एक ढेला मार देने से सब उड़ जाते हैं। वैसे ही हम भी यहाँ नहीं रहेंगी।

विशेष - रस - श्रृंगार, छन्द - दोहा चौपाई, भाषा - अवधी, शब्दशक्ति- लक्षणा।

(3)
सरवर तीर पदमिनी आई। खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥
ससि-मुख, अंग मलयगिर बासा। नागन्ह झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥
ओनई घटा परी जग छाहाँ। ससि कै सरन लीन्ह जनु राहाँ ॥
छपि गै दिनहिं भानु के दसा। लै निसि नखत चाँद परगसा ॥
भूलि चकोर दीठि मुख लावा। मेघ घटा कहँ चंद देखावा।।
दसन दामिनी, कोकिल भाखी। भौहें धनुख गगन लेइ राखी ॥
नैन- खँजन दुइ केलि करेहीं। कुच नारंग मधुकर रस लेहीं।।
सरवर रूप बिमोहा, हिये हिलोरहि लेइ ॥
पावँ छुवै मकु पाव, एहि मिस लहरहिं देइ ॥ 4 ॥

शब्दार्थ - खोंपा = सूड़ा, मुकुलाई = फैलाए, झाँपि = ढक, ओनई = झुकी, राहाँ = राहु दशा = स्थति, चकोर = पक्षी, कुच स्तन का अग्रभाग, मकु = कदाचित् मिस = बहाना, कारण।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मोहम्मद जायसी विरचित महाकाव्य पद्मावत के 'मानसरोवर-खण्ड' से उद्धृत हैं।

प्रसङ्ग - इस चरण में जायसी ने पद्मावती के मानसरोवर में स्नान करने का सुन्दर चित्रण किया है।

व्याख्या - अपनी सखियों सहित पद्मावती सरोवर के तट पर आई और अपने जूड़े को खोलकर बालों को फैलाया। उसका मुख चन्द्रमा के समान तथा शरीर से मलयपर्वत से आने वाली सुगन्ध निकल रही थी। पद्मावती के धवल व सुवासित शरीर पर बिखरे हुए बाल ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे मानो सुगन्ध-लोभी नागों ने सुगन्ध पान के लिए मलयपर्वत को चारों ओर से ढक लिया हो। पद्मावती के घने काले बाल उमड़े हुए घन-समूह प्रतीत होते हैं ऐसा लगता है कि उसके प्रभाव से समस्त जगत् छाया से प्लावित हो गया है और राहु ने चन्द्रमा (पद्मावती का मुख) से अपना स्वाभाविक बैर छोड़कर राहु (काले बाल) ने चन्द्रमा (मुख) की ही शरण ली हो। पद्मावती के घने काले बादल के प्रभाव से दिन में ही सूर्य की स्थति भी तिरोहित हो गयी और ऐसा लगा कि काले बालों की कालिमा की रजनी में पद्मावती रूपी चन्द्रमा ने अपने नक्षत्र - तारामण्डल (सखियों) के साथ विकसित हुआ हो। चन्द्र- प्रेमी चकोर ने पद्मावती के मुख को चन्द्रमा समझ लिया और भूलकर अपनी अपलक दृष्टि पद्मावती पर लगा दिया। केशों से घिरे मुँख को चकोर ने बादल आच्छादित चन्द्रमा समझ बैठा। पद्मावती के रूप में मानो सचन्द्र-नक्षत्र साक्षात वर्षा का समागम हो गया, उसके दाँत बिजली के समान कान्तिमान, उसकी वाणी कोकिला के समान मीठी तथा उसके नेत्र क्रीड़ा करते दो खंजन पक्षी और उसके स्तन नारंगी और स्तन का अग्रभाग कुच नारंगी में लिपटे रसपान करते भौरें लगते हैं। पद्मावती की इस छटा को देखकर मानसरोवर विमुग्ध हो गया और हिलोरें मारने लगा और लहरें लेकर पद्मावती के पैर छूने को आतुर हो उठा।

विशेष - रस - संयोग श्रृंगार, छन्द - दोहा, चौपाई, अंलकार - रूपकातिशयोक्ति, उपमा, उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान।

(4)

लागी केलि करै मझ नीरा। हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा ॥
पद्मावति कौतुक कहै राखी। तुम ससि होडु तराइन्ह साखी ॥
बाद मेलि कै खेल पसारा। हार देइ जो खेलत हारा।।
साँवरिहि साँवरि, गोरिहि गोरी। आपनि आपनि लीन्ह जो जोरी ॥
बूझि खेल खेलहु एक साथा। हार न होई पराए हाथा ॥
आजुहि खेल, बहुरि कित होई। खेल गए कित खेलै कोई ॥
धनि सो खेल खेल सह पेमा रउताई और कूसल खेमा ॥
मुहम्मद बाजी पेम कै, ज्यों भावैं त्यों खेल।
तिल फूलहिं कै संग ज्यों, होइ फूलायत तेल ॥ 6 ॥

शब्दार्थ - मझ = मध्य में, कौतुक = देखने के लिए, साखी = साथी, बदि = बादी (शर्त), मेलि = लगाकर, रउताई = स्वामी होने का भाव, फूलायत = फूल की सुगन्ध वाला।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंङ्ग - कवि जायसी ने पद्मावती और सखियों के खेल के माध्यम से जीवन के खेल को सावधानी से खेलने का संकेत दिया है।

व्याख्या - सभी सखियाँ मानसरोवर के जल के मध्य क्रीड़ा करने लगी इस क्रिया को देख मानसरोवर के हंस लज्जित होकर किनारे जाकर बैठ गए। सखियों ने पद्मावती को प्रेक्षक के रूप में खेल- खेलने के लिए अलग रखा और कहा कि चन्द्रमा के समान तुम हम तारामण्डल के खेल की साक्षी बनो। सभी सखियों ने यह बाजी लगाकर खेल प्रारम्भ किया कि जो खेल में हार जाएगा उसे अपना हार देना पड़ेगा। साँवली ने साँवली को और गोरी ने गोरी को अपनी जोड़ी बनाकर साथ रख लिया। और परस्पर कहा कि बहुत समझ-बूझ कर खेल खेलना जिससे विपक्षी पक्ष से पराजय का मुँह न देखना पड़े। जायसी यहाँ जीवन के खेल को संयमित रूप से खेलने का संकेत भी देते हैं। सखियाँ कहती हैं, जो खेल आज अर्थात् जीवन के रहते खेल लेंगी वह दुबारा कहाँ सम्भव है यदि खेल समाप्त होने पर फिर कौन खेल पाता है। वह खेल धन्य है जो प्रेम के साथ खेला जाए उसी खेल में ठकुराई और अपनी कुशल क्षेम समाहित है।

जायसी कहते हैं जीवन एक खेल ही है जीवन की वास्तविकता और अवास्तविकता को समझकर कार्य करना चाहिए तथा प्रेम से खेली गई बाजी को जैसे इच्छा हो खेला जा सकता है जिस प्रकार तिल और फूल के संयोग से उत्तम फुलैल तेल बनता है उसी प्रकार आत्मा जगत् जीवन के संसर्ग से ही परमात्मा तक पहुँच कर मुक्ति प्राप्त कर सकती है।

विशेष - रस - शान्त, छन्द - दोहा, चौपाई, अलंकार - तद्गुण उत्प्रेक्षा, रूपक, काव्यगुण प्रसाद, शब्दशक्ति - लक्षण ।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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